Tuesday 15 July 2014

A Beautiful Ghazal by "Ali Sardar Zafari"

मेरी वादी में वो इक दिन यूँ ही आ निकली थी
रंग और नूर का बहता हुआ धारा बन कर

महफ़िल-ए-शौक़ में इक धूम मचा दी उस ने
ख़ल्वत-ए-दिल में रही अन्जुमन-आरा बन कर

शोला-ए-इश्क़ सर-ए-अर्श को जब छूने लगा
उड़ गई वो मेरे सीने से शरारा बन कर

और अब मेरे तसव्वुर का उफ़क़ रोशन है
वो चमकती है जहाँ ग़म का सितारा बन कर