जब भी शाम गहराती है
तेरी याद आ जाती है... बस
यूँ ही
मेरा कोई इरादा नहीं होता
फिर भी सता जाती है ... बस
यूँ ही
तेरे मुरीद हम नहीं हैं
हक अपना जताती है ... बस
यूँ ही
लाख कर लूँ बंद दरवाजे दिल
के
चुपके से घर बना जाती है
... बस यूँ ही
तेरे हाथों में खंजर तो
नहीं दिखता
मैं फ़ना हो जाता हूँ ... बस
यूँ ही
दिल की लगी को दिल्लगी
समझते हो
कभी दिल भी लगाओ ... बस यूँ
ही
कब से साकी बने बैठे हो
कभी शराब भी बन जाओ ... बस
यूँ ही
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