Tuesday 9 October 2012

Maanavta (Humanity)


सिसक रही मानवता कैसे

देखो सड़क किनारे बैठ

आगे बढ़ जाते लोग
उसको वितृष्णा से देख

समय नहीं किसी के पास
जाके पूछे उसका हाल
कल तक थी जो हृदय में
पड़ी उपेक्षित आज बेहाल

घूर रहा उसे स्वार्थ
बैठा है लगाये घात
हो गयी मलिन मानवता
सह स्वार्थ के क्रूर आघात

धर दबोचा मानवता को
तभी इर्ष्या ने
गड़ा दिए विषदंत नुकीले
कोमल उसकी ग्रीवा में

बह चली धारा रक्त की
लगी तड़पने मानवता
सोच रही पड़ी असहाय
हाय काल की विषमता....

No comments:

Post a Comment